राजनांदगांव। शिक्षा का अधिकार कानून में निःशुल्क शिक्षा को परिभाषित किया गया है, लेकिन यह कानून सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया है, क्योंकि इस कानून के अंतर्गत जिन गरीब बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा प्रवेश दिलाया गया है, वे अपने बच्चों को पैसे देकर पढ़ाने को मजबूर है।
गुरूवार को कई पालकों ने कलेक्टर को लिखित में यह जानकारी दिया है कि वे शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत अब प्रायवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते है, क्योंकि प्रायवेट स्कूलों के द्वारा उन्हे मंहगे-मंहगे किताबे-कॉपी और स्कूल ड्रेस खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, और उनके बच्चों को बिना कॉपी-किताबों और ड्रेस के स्कूल नहीं आने को कहा जा रहा है।
शिक्षा का अधिकार कानून, माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर, स्कूल शिक्षा विभाग और लोक शिक्षण संचालनालय के द्वारा जारी आदेश में यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि आरटीई के अंतर्गत प्रायवेट स्कूलों में प्रवेशित गरीब बच्चों को कॉपी-किताबें, लेखन समाग्री और गणवेश स्कूल के द्वारा निःशुल्क उपलब्ध कराया जाएगा, लेकिन प्रायवेट स्कूलों में ऐसा नही हो रहा है, क्योंकि पालकों को अपने बच्चों के लिए मंहगी-मंहगी कॉपी-किताबें, लेखन समाग्री और गणवेश स्वयं अपने पैसे से खरीदना पड़ रहा है, जिसके लिए प्रतिवर्ष उन्हें लगभग 10 से 15 हजार खर्च करना पड़ता है।
कोई बच्चा किसी भी प्रकार से शुल्क अथवा प्रभार अथवा व्यय का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, जो उसे शिक्षा जारी रखने और पूरी करने से रोक सकता है।
छत्तीसगढ़ पैरेट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि हम लगातार जिला शिक्षा अधिकारी को यह जानकारी दे रहे है कि प्रायवेट स्कूलों के द्वारा आरटीई के गरीब बच्चों को कॉपी-किताबें, लेखन समाग्री और गणवेश निःशुल्क उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, पालकों को अपने बच्चों के लिए कॉपी-किताबें, लेखन समाग्री और गणवेश स्वयं खरीदना पड़ रहा है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे है, जिसके कारण अब तक लगभग चार हजार गरीब बच्चे स्कूल छोड़ चुके है, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी कार्यवाही के नाम से सिर्फ खानापूर्ति कर रहे है और प्रायवेट स्कूलों को संरक्षण दिया जा रहा है।