राजनांदगांव। राज्य शासन द्वारा पारित स्थानांतरण नीति 2025 एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा स्पष्ट निर्देशों के बावजूद पशुधन विकास विभाग में संलग्नीकरण का खेल खुलेआम जारी है। विभागीय उपसंचालक की मिलीभगत से चहेतों को न केवल मनमानी पोस्टिंग दी जा रही है, बल्कि इसके एवज में प्रतिमाह राशि लिए जाने की चर्चाएं भी जोरों पर हैं।
स्थानांतरण नीति के बिंदु क्रमांक 3.16 में स्पष्ट उल्लेख है कि स्थानांतरण आदेश जारी होने के 15 दिवस के भीतर संबंधित अधिकारी को एकतरफा कार्यमुक्त कर देना है, अन्यथा कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। वहीं, बिंदु क्रमांक 3.17 के अनुसार 5 जून 2025 से समस्त संलग्नीकरण स्वतः समाप्त माने जाएंगे। बावजूद इसके, पशुपालन विभाग में नियमों को दरकिनार कर पुराने ढर्रे पर ही कार्य जारी है।
पशु चिकित्सा अधिकारी संघ राजनांदगांव द्वारा जिला प्रशासन को सौंपे गए आवेदन में आरोप लगाया गया है कि विभाग में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। संघ के अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग के डॉ. सत्यजीत मेश्राम, डॉ. विकास मेश्राम व डॉ. संदीप इंदुलकर को स्थानांतरण आदेश के तुरंत बाद एकतरफा कार्यमुक्त कर दिया गया। जबकि उसी आदेश में शामिल डॉ. फनेश्वर कुमार साहू, डॉ. प्रेम कुमार देवांगन और डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी अब तक अपने पुराने पदस्थापना स्थल पर कार्यरत हैं और नियमित वेतन भी उठा रहे हैं। यह सीधे तौर पर शासन की स्थानांतरण नीति का उल्लंघन है।
संघ के जिलाध्यक्ष डॉ. तरुण रामटेके ने बताया कि विभाग में मनमानी संलग्नीकरण के कारण फील्ड स्तर पर कार्यरत पशु चिकित्सकों पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ रहा है, जबकि जिला कार्यालय में पर्याप्त चिकित्सक मौजूद हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि दो दिवस के भीतर सभी नियम विरुद्ध संलग्नीकरण समाप्त नहीं किए गए और संबंधित अधिकारियों को रिलीव नहीं किया गया, तो संघ एवं अजाक्स द्वारा विभागीय कार्यालय का घेराव किया जाएगा।
यह पूरी स्थिति दर्शाती है कि कुछ अधिकारी स्थानांतरण नीति की आड़ में अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने में लगे हैं। हैरानी की बात यह है कि शासन के उच्चाधिकारी या तो इस पूरे मामले से अनजान हैं या जानबूझकर आंखें मूंदे हुए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि शासन इस खुलेआम हो रहे नियम उल्लंघन पर क्या सख्त कदम उठाता है।