छुईखदान। जनपद पंचायत छुईखदान में करोड़ों के फर्जी भुगतान घोटाले में अब लीपापोती शुरू हो गई है। जहां एक ओर तत्कालीन सीईओ को बचाने के प्रयास तेज हो गए हैं, वहीं दूसरी ओर छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाने की तैयारी की जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक, जिला पंचायत अब जनपद पंचायत लिपिक लिकेश तिवारी को निलंबित करने की प्रक्रिया में है। जबकि जांच में यह स्पष्ट हो चुका है कि सभी भुगतान तत्कालीन सीईओ रवि कुमार के डिजिटल सिग्नेचर (DSC) से ही हुए हैं। इसके बावजूद उन्हें क्लीन चिट देने की कोशिशें की जा रही हैं।
सीईओ ने खुद को जांच अधिकारी घोषित किया
पेपर में मामला उजागर होने के बाद सीईओ रवि कुमार ने खुद को ही जांच अधिकारी बना लिया और लिपिक व ऑपरेटरों के बयान दर्ज कर रिपोर्ट तैयार कर दी। अब सवाल उठ रहा है कि भुगतान प्रक्रिया में कैशबुक, गोस्वारा और मदवार व्यय की जिम्मेदारी सीईओ की होती है, तो फिर क्या वह पूरे मामले से अनजान थे?
कैशबुक में बैकडेट एंट्री, सहमति पत्रों का दबाव
मामले को वैध ठहराने के लिए अब पंचायत सचिवों व सरपंचों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे पुराने तारीखों में सहमति पत्र तैयार करें। ताकि यह साबित किया जा सके कि भुगतान उनकी अनुमति से हुआ। साथ ही कैशबुक में भी बैकडेट एंट्री कराई जा रही है, जिससे पूरे घोटाले को कागजों पर सही ठहराया जा सके।
राजनीतिक हस्तक्षेप भी आया सामने
जैसे-जैसे घोटाले की परतें खुल रही हैं, कुछ स्थानीय नेता सचिवों और सरपंचों पर दबाव बना रहे हैं कि वे सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करें। वहीं, चार ऑपरेटर जिन्हें तत्काल हटाया गया है, वे अब नेताओं की शरण में पहुंच चुके हैं।
सचिव बोले- हमें जानकारी ही नहीं थी
ग्राम पंचायत समबलपुर और सिलपट्टी के सचिवों ने जांच के दौरान स्पष्ट किया कि भुगतान की जानकारी उन्हें नहीं थी। राशि सीधे वेंडरों को ट्रांसफर की गई और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि पूरा खेल जनपद स्तर पर रचा गया और पंचायतों को अंधेरे में रखकर राशि का गबन किया गया।
अब निगाहें जिला प्रशासन की कार्रवाई पर
जनता और कर्मचारी संगठन अब इस बात पर नजरें गड़ाए हुए हैं कि क्या बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई होगी या फिर एक बार फिर छोटे कर्मचारियों को ही बलि का बकरा बनाया जाएगा।