राजनांदगांव। युग प्रधान गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी ने आज यहां कहा कि नमामि, खमामी और मिच्छामी यह तीन शब्द जीवन जीने की कला सिखाते हैं। जीवन का रूपांतरण कर देते हैं, रिश्तो में मधुरता और सुदृढ़ता लाते हैं। उन्होंने कहा कि यह तीन शब्द यदि हम व्यवहार में ला लेते हैं तो हमारा जीवन ही बदल जाएगा। संपूर्ण जैन धर्म का सार भी यही है।
तेरापंथ भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि नमामि अर्थात विनम्रता। हमारे जीवन में विनय और समर्पण का भाव होना चाहिए। विनय हमारी विरासत और संस्कृति है। विनम्रता जीवन का सर्वोत्तम आभूषण है। उन्होंने कहा कि जिंदा रहना तो जिंदों की शान है, अकड़ना तो मुर्दों की पहचान है। जब तक आप बड़ों के सामने में नहीं झुकेंगे तब तक आपको आशीर्वाद नहीं मिलेगा। विनय विकास है और अहंकार विनाश है। रावण को उसके अहंकार ने मारा। अहंकार की सबसे बड़ी निशानी है पतन।
मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि आपके जीवन में ऐसे विनम्रता का भाव आना चाहिए कि आप ऊंचा होते जाएं। उन्होंने कहा कि जब हम अपने से बड़े व्यक्ति के पैर के अंगूठे का स्पर्श करते हैं तो हमारे शरीर के अंदर शक्ति का संचार होता है। यह हमें स्फूर्ति देता है और हमारे जीवन को ऊपर उठाता है। आशीर्वाद में अद्भुत शक्ति होती है। आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता। प्रणाम का परिणाम सदैव कल्याणकारी होता है, इसलिए सुबह उठते ही अपने माता-पिता एवं गुरु का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें। दूसरा शब्द है खमामी अर्थात क्षमा। उन्होंने कहा कि विवाद का सबसे बड़ा कारण यह है कि हम बातों को भूलते नहीं है। अगर जिंदगी में खुश रहना है तो विवाद को दरकिनार कर क्षमा मांगना सीखे। उन्होंने कहा कि जिंदगी आसान नहीं होती, जिंदगी को आसान बनाना पड़ता है। गलती किए हैं तो क्षमा मांगने में हर्ज ही क्या है, अपनी गलती की क्षमा मांगना ही उचित है। इसी तरह तीसरा शब्द मिच्छामि अर्थात क्षमा मांगना और क्षमा करना। क्षमा मांगना और क्षमा करना सीखे तो जीवन धन्य हो जाएगा। जीवन में यदि नमामि, खमामी और मिच्छामी को लेकर कर कार्य किया जाए तो जीवन सफल हो जाएगा। आज प्रवचन में राधा वल्लभ जी राठी, प्रकाश चंद जी सांखला, प्रकाश चंद जी सिंगी, केशरी चंद जी सावा, गणेश जी ओस्तवाल एवं शिव कुमार जी संचेती उपस्थित थे।