डोंगरगढ़ के जटाशंकर मंदिर जहाँ महाशिवरात्रि में दूर दूर से पहुँचते है हजारों लोग

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डोंगरगढ़ के जटाशंकर मंदिर जहाँ महाशिवरात्रि में दूर दूर से पहुँचते है हजारों लोग

धर्म नगरी डोंगरगढ़ के पहाड़ों वाली देवी मां बमलेश्वरी देवी मंदिर के दक्षिण पश्चिम दिशा में एक विशाल पर्वत पहाड़ी के ऊपर श्री जटाशंकर महादेव जी का वह स्थान मौजूद जिस पहाड़ी पर जटाशंकर महादेव का यह स्थान मौजूद है वह पहाड़ी अपने आप में शिवलिंग का आकार लिए हुए प्रतीत होती है,

क्षेत्र के बुजुर्ग लोगों की जन श्रुति यह पता चलता है की इस क्षेत्र में प्राचीन काल से शंभू महादेव के उपासकों का निवास रहा है एक कथाओं से ज्ञान होता है कि प्राचीन काल में बहुत बड़ा आस्था मूलक समाज शंभू महादेव के त्रिशूल मार्ग का अनुवाई था,

मंदिर से, 180 फुट लंबाई पूर्व में एवं 87.5 फुट लंबाई उत्तर में लिए हुए इस पहाड़ी के ऊपर एक विशाल मैदान है यहां पर एक साथ करीब 5000 लोग बैठ सकते हैं शंभु महादेव के त्रिशूल मार्ग में आस्था रखने वाले विचारकों का मत है कि यहां बैठकर सभी महादेव द्वारा बताए हुए जीवन के लिए परम उपयोगी एवं कल्याणकारी त्रिशूल मार्ग का श्रवण किया करते थे

त्रिशूल मार्ग के श्रवण से लोग महा ज्ञानी योग सिद्ध और शक्तिशाली बनते थे इस प्रकार यह स्थान स्वयं प्राकृतिक कालचक्र में समायोजित किये हुए अपने वास्तविक अस्तित्व को बनाये हुए आज भी नवसत्व के रूप में आज हमारे सामने विधमान है डोंगरगढ़ के स्थानीय निवासी 50 वर्षीय स्वर्गीय श्रीयुत भगोली जी जो कि अब इस दुनिया मे नही रहे वे अनुभव एवं स्मृति से परिचित आयुर्वेदिक जड़ी बूटिया को खोजने के लिए अपने साथियों के साथ बम्लेश्वरी पहाड़ी के आस पास जाया करते थे उस समय वे ग्राम गाजमर्रा कल्याण पुर से करीबी संबंध थ अक्सर उनका आना जाना लगा रहता थ एक दिन उनकी पत्नी को सपना दिखा की पहाड़ी पर भगवान शंभू महादेव उन्हें स्वयं पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे रहे हैं

इस सपना के बारे में उन्होंने अपने पति को बताया कुछ समय पश्चात शंभू महादेव द्वारा उनको दिया हुआ आशीर्वाद सत्य साबित हुआ उसे समय उसे पर्वत पर मंदिर नहीं बना था तब से उस स्थान से अटूट श्रद्धा हो गई और वह सदैव उसे स्थान को शंभू के स्थान के रूप में पूजते रहे वह कभी भी उसे स्थान को प्रणाम किए बिना नहीं गुजरते थे उनके द्वारा हर शिवरात्रि के समय उसे स्थान पर श्रीफल अर्पित किया जाता था उसे श्रद्धा भक्ति को निरंतर आज भी उनके पुत्रों द्वारा जारी रखा हुआ है

आज भी उसके पुत्र हर शिवरात्रि को नियमित रूप से उसे स्थान पर श्रीफल अर्पित करते आ रहे हैं सन 1998 में वरिष्ठ शिक्षक श्री बी डी दत्ता ने इस पर्वत का जीर्णोद्धार करने का कार्य प्रारम्भ किया एवं ग्रामीण लोगो के सहयोग एवं समन्वय से इस पहाड़ी पर मंदिर का निर्माण कराया जिसका निर्माण एवं विकास कार्य प्रक्रियाधीन है अब इस पर्वत पर बने मंदिर के विकास हेतु जटा शंकर मंदिर ट्रस्ट अस्तित्व में है यह पर महाशिवरात्रि के समय लोगो का जमावड़ा रहता हैं और सावन महीने में नागराज को साक्षात देखा जा सकता है